क्या
है कोई?
जो दे सके
मुझे विश्वास
अपना सच्चा विश्वास
अपना सच्चापन
अपनापन ।
जहाँ सिर उठाती हूँ
सिर्फ दिखती है
बेइमानी
या फिर धुन्ध में
सच्चाई की
थोड़ी सी झलक ।
उस झलक के पास जाती हूँ
पवित्र मन से
अपनेपन से भरे हुए
घड़े की तरह
चुपचाप, गम्भीर
लेकिन वह झलक भी
मिथ्या ही होती है,
एक मृगतृष्णा होती है !
क्या प्यार की,
अपनेपन की,
सच्चाई की,
एक झलक भी है
इस दुनिया में !
या दुनिया ठूँठ हो गई हैै,
प्यार के फूल मुरझा चुके है,
पतझड़ आ गया है ।
लेकिन नहीं
इस पतझड़ से हमें
घबड़ाना नहीं है,
सच्चाई के मार्ग पर
अडिग रहना है ।
रहने दो लोगों को ठूँठ,
उन्हें पतझड़ में ही
लगाने दो कृत्रिम पुष्प
अपने मे ले आअो बसंत,
विश्वास प्यार का बसंत
क्या पता इस बसंत मे खिले
पुष्पों की महक से
कुछ बदलाव आ सके ।
है कोई?
जो दे सके
मुझे विश्वास
अपना सच्चा विश्वास
अपना सच्चापन
अपनापन ।
जहाँ सिर उठाती हूँ
सिर्फ दिखती है
बेइमानी
या फिर धुन्ध में
सच्चाई की
थोड़ी सी झलक ।
उस झलक के पास जाती हूँ
पवित्र मन से
अपनेपन से भरे हुए
घड़े की तरह
चुपचाप, गम्भीर
लेकिन वह झलक भी
मिथ्या ही होती है,
एक मृगतृष्णा होती है !
क्या प्यार की,
अपनेपन की,
सच्चाई की,
एक झलक भी है
इस दुनिया में !
या दुनिया ठूँठ हो गई हैै,
प्यार के फूल मुरझा चुके है,
पतझड़ आ गया है ।
लेकिन नहीं
इस पतझड़ से हमें
घबड़ाना नहीं है,
सच्चाई के मार्ग पर
अडिग रहना है ।
रहने दो लोगों को ठूँठ,
उन्हें पतझड़ में ही
लगाने दो कृत्रिम पुष्प
अपने मे ले आअो बसंत,
विश्वास प्यार का बसंत
क्या पता इस बसंत मे खिले
पुष्पों की महक से
कुछ बदलाव आ सके ।